उलझन (uljen)
उलझन आज रमेश ऑफिस से आए तो वह बड़े खुश थे। उन्होंने कहा, सरोज हमें शाम को दोस्त के यहां खाने पर चलना है। उसने बड़े दिल से मुझे आमंत्रण दिया है। मैं खुशी से झूम उठी कि चलो कभी तो किसी ने हमें भी खाने पर बुलाया है। वरना मैं तो घर की चार दिवारी में कामकाज करते हुए अपना पूरा दिन बिता देती थी। पता ही नहीं चलता था। कब सुबह रमेश गए और कब शाम को वह लौट आए। पूरा दिन में घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी। रमेश की इतनी ज्यादा सैलरी ना होने के कारण हमारा गुजारा बड़ी मुश्किल से ही चल पाता था। इसलिए मैं भी दिन में इधर-उधर काम कर लेती थी। कभी किसी की साड़ी में फॉल लगा दिया तो कभी किसी का ब्लाउज सी दिया कभी आंटी जी के पापड़ बना दिए तो कभी-कभी कोई चिप्स बना रहा तो उसकी सुख दिए बदले में कॉलोनी वाले मुझे थोड़े पैसे दे दिया करते थे ,उन्हें मालूम था कि रमेश की इतनी ज्यादा सैलरी नहीं है और मैं काफी परेशान रहती थी इसलिए वह भी मेरी बदले में मदद कर दिया करते थे इसी तरह मेरा पूरा दिन निकल जाता था लेकिन आज तो मैं बहुत खुश थी कि मुझे खाना खाने जाना है रमेश ने बताया कि उसका दोस्त जिनके यहां उ
U r right
ReplyDeleteThanx for suggestions
ReplyDeleteHmm is anyone else having problems with the images
ReplyDeleteon this blog loading? I'm trying to determine if its a problem on my end or if it's the blog.
Any feed-back would be greatly appreciated.
Ok I will manage
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