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       उलझन  Uljen                        Part-2 सरोज जल्दी-जल्दी साडी और मैचिंग की जूलरी और सैंडल लेकर जल्दी से ललिता भाभी के यहां से निकल कर पार्टी में जाने के लिए तैयार होने के लिए चल देती है जल्दी से सरोज अच्छी सी तैयार हो जाती है उसके दिन सरोज सबसे सुंदर पार्टी में लग रही थी उसने मन ही मन ललिता भाभी को धन्यवाद दिया आज जिनकी वजह से उनकी इज्जत रह पाई और वह इतनी सुंदर लग रही थी बार-बार उसकी पत्नी भी उसकी ही तारीफ कर रहे थे अब बहुत खुश थी और वह अपनी सबसे अच्छी सहेली ललिता भाभी को मानने लगी थी घर आने के बाद दूसरे दिन सरोज का मन नहीं था साडी को लौटाने  का फिर भी उसने सारा सामान पैक किया और ललिता भाभी को लौटाने के लिए चल दी जल्दी से जाकर उसने ललिता भाभी की घंटी बजाई और उन्होंने कल की पार्टी की सारी घटने को बताया कितनी सुंदर लग रही थी और कितनी प्यारी लग रही थी दोपहर का समय था सरोज के यहां पर कोई ऐसा नहीं था ललिता भाभी के यहां मंदा मंदा ऐसा चल रहा है जो सरोज को बहुत ही ठंडा का एहसास दे रहा था ललिता भाभ...

Romantic kahaniya ,Aj mene apna pyar paa liya

           मैंने अपना प्यार पा                           लिया है।   


   आज 5 साल बाद में अपने घर लौट रही थी जब से विवेक के साथ विवाह के बंधन में बंधी थी कभी मुड़कर मैंने अपनी पिछली जिंदगी में नहीं देखा आज भी याद है, मुझे वह दिन जब मैं मुस्कुराती थी तो किसी का दिल खिल उठता था  मेरी मुस्कुराहट किसी की जीने की वजह थी विवेक और मेरी शादी को 5 साल हो गए पांच साल में मैंने कभी भी पीछे मुड़कर।  नहीं देखा मैंने आज को अपना लिया था और शायद कभी भी लौटकर सीकर अपने घर में नहीं जाती।  जब आज सुबह उठी तो फोन की घंटी बजी सामने से पापा की आवाज थी बेटा तुझे देखने का बहुत मन है अब तबियत ठीक नहीं रहती है एक बार हमें माफ कर दे। और मिलने आजा पापा की आवाज से मुझे अंदर तक हिला दिया मैं तुरंत विवेक से  कहा मुझे घर जाना है उनकी तबीयत ठीक नहीं है।

विवेक ने तुरंत ही मेरी टिकट करवा दी। वैसे भी उसे मुझे से कोई मतलब नहीं था। शादी के बाद हमने बहुत कम समय एक दूसरे के साथ बिताया होगा। एक दूसरे के साथ हम काम ही बात कर पाते थे। विवेक के लिए उसकी पहली पसंद उसका बिजनेस है काफी दिनों तक वो बाहर ही रहता है। अपने बिजनेस टूर पर तो हम एक साथ बहुत कम टाइम स्पेंड करते हैं क्योंकि वह दिन भर अपनी मीटिंग में बिजी रहता है। उसके पास बिल्कुल समय नहीं है। मेरे लिए, मैं सर्वेंट के साथ स्टेशन की तरफ सामान उठाकर चल पड़ी। मन  में बड़ी अजीब सी उलझन में था। एक-एक करके पुरानी यादें मेरे सामने आ रही थी। मैं ट्रेन में जाकर बैठ गई। ड्राइवर मुझे छोड़ कर चला गया। धीरे-धीरे ट्रेन ने अपनी रफ्तार पकड़ रही थी। जैसे-जैसे ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ रही थी, वैसे-वैसे मेरा मन उलझन में और पुरानी यादों में खोए जा रहा था।


मुझे याद है मैं हंसती थी तो मनोज खिल जाता था। उसका मेरा नाराज होने पर मुझे मनाना और मेरी एक मुस्कुराहट पर दुनिया लुटा देना। मैं मनोज के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। मनोज मेरी पूरी दुनिया था और मैं मनोज की । मनोज जैसा जीवन साथी किसी किस्मत वाली को ही मिल सकता है। मुझे आज भी याद है जब वह मुझे अपनी बाहों में भरता और प्यार करता तो मेरा रोम रोम खिल जाता था। मैं मनोज के छूने पर अपने आप को उसे समर्पित भी कर सकती थी पर उसने कभी मेरा फायदा नहीं उठाया। मनोज के पास सरकारी नौकरी नहीं थी इसके लिए पिताजी ने मेरी शादी विवेक से कर दी वैसे विवेक की यहां मुझे कोई परेशानी नहीं थी बहुत पैसा था लेकिन प्यार नहीं था विवेक के पास मेरे लिए वक्त नहीं है जीवन में सिर्फ सुविधा सब कुछ नहीं होती। प्यार तो मनोज की यादों में ही बसा है उसी के साथ खत्म सा हो चुका था सोचते सोचते कब स्टेशन आ गया पता ही नहीं चल मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी मैंने अपना सामान लिया और स्टेशन पर उतर गई पिताजी ड्राइवर के साथ मुझे लेने आए हुए थे ।मुझे देखकर मुझे गले लगा कर मुझसे माफी मांगने लगी हम गाड़ी में बैठे मैंने मां का हाल-चाल पूछा ।हम घर पहुंच गए मां मुझसे लिपटकर रोने लगी मेरी बच्ची तुम कहां चली गई मां ने गरमा गरम खाना बना रखा था। पिताजी बोले बेटा तेरा कमरा आज भी वैसे ही है जैसे तू छोड़ कर गई है तू नहा धोकर आजा फिर खाना खा लेते हैं तू तैयार हो जा मैं सीढ़िया चढ़कर ऊपर कमरे में पहुंची मेरे कमरे की हर एक चीज में रंग था।और वैसा ही रंग था जैसा उसे समय हुआ करता था हर चीज में मनोज का प्यार बसा था मैं कमरे की खिड़की खोली जहां से मैं और मनोज घन टो बातें करते थे हिम्मत जुटाकर मैने सामने खिड़की कों खोला ।


   वहा पर मनोज खड़ा था तोलिया सुख रहा था जैसे मेरी सांसे ही थम गई हो जिस्म से जान निकल गई हो तभी मनोज की नजर अचानक मेरी नजरों से टकरा गए वह स्तंभ रह गया था मां की आवाज आई कुसुम आ जाओ खाना लग गया है हजारों सवाल मेरे अंदर थे मनोज अभी भी क्या कर रहा है। उसकी शादी हुई या नहीं हुई। हजार सवालों का मन में लिए मैं मां के पास नीचे खाना खाने चली आई आज ऐसा लग रहा था ।कि मैं जिंदा हूं मेरी भी अस्तित्व है मेरे शरीर में एक खुशबू सी महक रही थी मां ने कहा विवेक ने तुझे पुछा नहीं की कहा पहुंच गई ।अभी तक उसका फोन तक नहीं आया मैंने कहा उसके पास वक्त नहीं है मेरे लिए। वह फ्री होगा ,अपने कामों से तभी वह मुझे फोन करेगा मां चुपचाप सुनती रही ,नहीं बस तुम ये मान लो कि मां मैं जीवित हूं मैं इधर-उधर की बातें की फिर मैने मां से मनोज के बारे में पूछा। मां बोली बेटा इससे तो हम   तेरी शादी उसी से कर देते तो ज्यादा अच्छा रहता अब तो वह जिले का कलेक्टर बन चुका है बाद में तेरे पिताजी और मैं बहुत पछताये है अपनी इकलौती संतान को इतना दूर देकर बातों बातों में मैंने मां से पूछा मनोज की शादी हो गई तो मां बोली नहीं बेटा उसने तो ब्याही नहीं किया अब तक। अब तो मेरा मन चंचल हो गया  मैं मनोज से मिलना चाहती थी मैं दौड़कर कमरे में गई और खिड़की खोली अभी तक मनोज वही खड़ा था शायद वह मेरे इंतजार कर रहा था मैंने उससे मिलने की इच्छा रखी तो उसके आंसू बहने लगे। शाम को मैं मार्केट के लिए मां से कहकर निकल गई मनोज ने मुझे होटल में बुलाया था ।आज मैंने अपने आप को बार-बार संवारा  मेरे सवारने में कमी तो नहीं रहेगी ।आज मैं सबसे सुंदर लगनी चाहिए थी आज मैं मनोज की कुसुम  बनाकर गई थी मुझे  देखते ही मनोज से नहीं रहा गया उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में दबा लिया और अपने सीने से चिपका लिया मैं भी उससे जुदा नहीं होना चाहती थी  काफ़ी देर तक मैं और मनोज बातें करते रहे! वह 5 साल से मेरा इंतजार कर रहा था आज मैं विवेक के साथ बंधे अपने जबरदस्ती के बंधन में और घुटन के रिश्ते को तोड़ने का निर्णय ले लिया था मैं कभी भी विवेक के पास लौटना नहीं चाहती जी आज मेरा  प्यार पूरा हो गया था।अब मुझे किसी की परवाह नहीं थी मनोज मेरे लिए सरकारी अफसर बन गया था आप बताएं। आप मुझे बताएं क्या मेरा निर्णय सही है मैंने कोई गलत तो नहीं किया कोई गलत निर्णय नहीं लिया ना मुझे भी तो जीवन जीने का हक है पूरे जीवन में अपने प्यार के साथ बिताने का निर्णय ले चुकी हु। क्या मेरा निर्णय सही है कमेंट जरुर करे।



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