उलझन (uljen)
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उलझन
पूरा दिन में घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी। रमेश की इतनी ज्यादा सैलरी ना होने के कारण हमारा गुजारा बड़ी मुश्किल से ही चल पाता था। इसलिए मैं भी दिन में इधर-उधर काम कर लेती थी। कभी किसी की साड़ी में फॉल लगा दिया तो कभी किसी का ब्लाउज सी दिया कभी आंटी जी के पापड़ बना दिए तो कभी-कभी कोई चिप्स बना रहा तो उसकी सुख दिए बदले में कॉलोनी वाले मुझे थोड़े पैसे दे दिया करते थे ,उन्हें मालूम था कि रमेश की इतनी ज्यादा सैलरी नहीं है और मैं काफी परेशान रहती थी इसलिए वह भी मेरी बदले में मदद कर दिया करते थे इसी तरह मेरा पूरा दिन निकल जाता था
लेकिन आज तो मैं बहुत खुश थी कि मुझे खाना खाने जाना है रमेश ने बताया कि उसका दोस्त जिनके यहां उन्हें खाना खाने जाना है वह बड़ा संपन्न परिवार का है लेकिन वह अमीर गरीबों को नहीं देखता है उसने ऑफिस में सबसे पहले निमंत्रण रमेश को दिया और दिल से आग्रह किया कि उसे जरूर आना है तो रमेश काफी खुश हुआ कि उसके दोस्त ने उसे बुलाया है तो उसने कहा सरोज जल्दी तैयार हो जाओ हम 7:00 बजे तक चलेंगे। लेकिन सरोज गहरी सोच में पड़ गई थी इस गहरी सोच में पड़ गई थी कि उसके पास तो कोई ऐसी साड़ी नहीं थी। जो ऐसे संपन्न परिवार में पहन कर जा सकती थी उसके पास तो दो या तीन साड़ियां ही है जिनको भी वो काफी बार पहन चुकी है और वह काफी पुरानी सी हो गई है। ना उसके पास कोई अच्छे जेवरात है ना ही कोई अच्छी सैंडल थी जिसे वह पहनकर शादी में जा सकती थी खाना खाने के लिए ,
लेकिन अब सरोज एक गहरी सोच में डूब चुकी थी ।उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें ,क्योंकि वह यह सब बात कर वह रमेश का मूड नहीं खराब करना चाहती थी।
क्योंकि काफी दिनों के बाद उसने रमेश को टेंशन से बाहर आकर खुशी के माहौल में देखा था रमेश काफी दिनों बाद बड़ा खुश दिखाई दे रहा था अब यह सब बात कर के वे रमेश को और ज्यादा मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। अब से गहरी सोच में डूब गई थी उसे क्या करना चाहिए था क्योंकि अभी घड़ी में 5:00 बजे थे 2 घंटे बाद उसे जाना था अब क्या करें और क्या ना करें इसी दुविधा के बीच में वह गहरी सोच में पड़ गई थी। तभी इस बीच में रमेश ने आवाज देते हुए कहा सरोज जल्दी-जल्दी तुम अपना काम करो तभी हम टाइम से पहुंच पाएंगे तुम तो आराम से खड़ी हुई कुछ सोच रही हो तभी सरोज ने कहा मैं बिल्कुल जल्दी ही कर रही हूं।
तभी अचानक से सरोज को याद आया की ललिता भाभी, ललिता भाभी ने एक बार उससे कहा था कि सरोज मेरे पास बहुत अच्छी-अच्छी साड़ियां रखी हुई है अगर तुम्हें कभी मन करे और तुम उन सदियों में से किसी साड़ी को पहनना चाहो तो मैं तुम्हें दे दूंगी क्योंकि रमेश की सैलरी इतनी नहीं है तो मैं जानती हूं कि तुम इन साड़ियों को पहनना चाहोगी तुम्हें कहीं आना जाना हो तो तुम मुझसे ले सकती हो।
तभी सरोज दौड़कर ललिता भाभी के यहां जाती है और ललिता भाभी का जोर-जोर से दरवाजा खटखटाती है। ललिता भाभी आती है और दरवाजा खोलती है और कहती है सरोज तुम आओ आओ कैसे आना हुआ तुम्हारा बड़े दिनों के बाद आई हो तुम्हें तो मेरी याद ही नहीं आती है। कि ललिता भाभी कैसी है तो उसने कहा भाभी मैं आपके पास कुछ काम से आई हूं आप बुरा तो नहीं मानेगी तो ललिता भाभी ने कहा, सरोज कभी मैं तुम्हारी बात का बुरा माना है जो आज मानूंगी तुम बोलो क्या बात है तब सरोज ने कहा, भाभी आज उनके दोस्त के यहां खाने का निमंत्रण आया है लेकिन मेरे पास तो ऐसी कोई साड़ी ही नहीं है जो मैं पहन कर जा सकूं एक बार आपने कहा था ना मैं आपकी कोई साड़ी पहन कर जा सकती हूं। ललिता भाभी जोर से हंसी और कहा हां सरोज, मैने बिल्कुल कहा था ।तुम कोई भी साड़ी लेकर यहां से पहन कर जा सकती हो तुम्हारे भैया मुझे इतनी साड़ियां दिलाते कि मेरा नंबर ही नहीं आता उनको पहनने का और सब पर मैचिंग की ज्वेलरी और सैंडल भी है तुम ले जाकर पहन सकती हो। सरोज बड़ी खुश हो गई है ललिता भाभी ने उसके सामने अलमारी खोल दी सरोज ने अलमारी को देखते ही जैसे ही उसकी निगाह साडियो पर गई उसका मन कर रहा था ।कि वह सारी की सारी साड़ियां ले ले।इतनी सुंदर साड़ियां थी लेकिन लेनी तो उसे एक ही थी उसने जैसे तैसे करके एक साड़ी पसंद की तो ललिता भाभी ने कहा तेरी पसंद बड़ी अच्छी है ये साड़ी तो मेने भी एक ही बार पहनी है और तुरंत ललिता भाभी ने वह साड़ी पैक करी और उसके साथ की मैचिंग की ज्वेलरी और सैंडल निकलते हुए सरोज को दे दिया कहां पहन लो और दिल चाहे जब पहन लेना और पहनकर फिर तुम लौटा देना। आगे पार्ट - 2 मै बताऊंगी के ललिता भाभी ने सरोज पर यह अहसान क्यों किया।
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